तुम बलखाती धार प्रिये,
मै मदमाता सागर हूँ |
तुम वंशी की तान मधुर,
मै लहराता स्वरवर हूँ |
तुम उन्मादी मदिरा सी,
मै ठंडा शांत कांच सा हूँ |
तुम बलखाती धार प्रिये,
मै मदमाता सागर हूँ |
तुम वंशी की तान मधुर,
मै लहराता स्वरवर हूँ |
तुम उन्मादी मदिरा सी,
मै ठंडा शांत कांच सा हूँ |
तुम राजमहल की वीथिका भव्य,
मै कुचला पथ मधुशाला का |
तुम शशि की शीतल रश्मि,
मै प्रखर तेज सूर्य का हूँ |
तुम वेदों के श्लोक पवित्र,
मै भद्दे कटाक्ष सा हूँ |
तुम नि:स्सार विस्तार सी हो,
मै खुद में ही बंदी - बंधक सा |
तुम हो मेरे प्रेम सी विस्तृत,
मै सामाजिक रूढ़ी सा |
तुम हो मन की तृप्त छवि,
मै घाव टीसता दिल का हूँ |
तुम बलखाती धार प्रिये,
मै मदमाता सागर हूँ ||
०९-०१-१९८६
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