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  • एक चेष्टा और

    कितने बरस
    कोशिश की सावधानी से चलने की
    कदम यूं फूंक-फूंक कर रखता रहा
    फिर भी जाने कितनी ठोकरें,
    जाने कितने धक्के खाता रहा
    जीवन की इस लम्बी राह पर

    कोई राह सहल न रही
    कोई मंजिल सहज न मिली।


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  • एक चेष्टा और

    कितने बरस
    कोशिश की सावधानी से चलने की
    कदम यूं फूंक-फूंक कर रखता रहा
    फिर भी जाने कितनी ठोकरें,
    जाने कितने धक्के खाता रहा
    जीवन की इस लम्बी राह पर

    कोई राह सहल न रही
    कोई मंजिल सहज न मिली।

    अब सोचता हूं एक चेष्टा और कर देखूँ
    इस बार इस राह पर
    मस्ती में - मदहोशी में चलकर देखूँ
    क्या मालूम मदहोशी के आलम मे
    बिना लड़खडाये, बिना ठोकर खाये
                        -- तुम तक पहुँच पांऊ।

     

    ~ नीरज गर्ग

      ०९.०६.२०१५

    • Date

      03-10-2023

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