इस जीवन की पथरीली
पर्वतीय राहों में
जहाँ राह ख़तम होने के बाद
मेरे पाँव रुक कर
जम गए थे |
वो राह तुम्हारे स्पर्श से
पिघलने लगी,
मेरा मन
जो एक हिमनद (ग्लेशियर)
सा जमा था,
तेरे स्नेह और प्रेम का
समंदर हो गया...
इस जीवन की पथरीली
पर्वतीय राहों में
जहाँ राह ख़तम होने के बाद
मेरे पाँव रुक कर
जम गए थे |
वो राह तुम्हारे स्पर्श से
पिघलने लगी,
मेरा मन
जो एक हिमनद (ग्लेशियर)
सा जमा था,
तेरे स्नेह और प्रेम का
समंदर हो गया...
और इस समंदर का
जल मीठा है..
नीरज गर्ग
१५ अगस्त २०१२ २२:३७
फरीदाबाद
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