जीवन - मानो
मैंने अपनी मुट्ठी पानी में डुबा दी
जीवन, इसके अर्थ, इसकी भावनाएं
- जैसे पानी
और मै बार-बार मुट्ठी बंद कर
इसे पकड़ने की चेष्टा में
पर ये बार बार फिसल जाता है
मेरी उँगलियों के बीच की
कमजोरियों की दरारों से ।
बस कुछ लहरें उठती हैं पानी में
बाकी कुछ नहीं पकड़ा जाता
और मै फिर से इसी चेष्टा में लग जाता हूँ
पर सफल नहीं हो पाता
जीवन - मानो
मैंने अपनी मुट्ठी पानी में डुबा दी
जीवन, इसके अर्थ, इसकी भावनाएं
- जैसे पानी
और मै बार-बार मुट्ठी बंद कर
इसे पकड़ने की चेष्टा में
पर ये बार बार फिसल जाता है
मेरी उँगलियों के बीच की
कमजोरियों की दरारों से ।
बस कुछ लहरें उठती हैं पानी में
बाकी कुछ नहीं पकड़ा जाता
और मै फिर से इसी चेष्टा में लग जाता हूँ
पर सफल नहीं हो पाता
इस सबसे ऊब कर - फिर जब मै
ये मुट्ठी पानी से बाहर निकालता हूँ
तो पाता हूँ - जीवन इसे भिगो चुका है
पर सारा फ़ालतू जीवन
बूँद बूँद कर चू जाता है
और बचे हुए भावनाओं के गीलेपन को
इस दुनिया की तपती हवाओं के अंधड़
अपने यथार्थों की तपन से सुखा देते हैं।
~ नीरज गर्ग
रूड़की
२६-०४-१९८८
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