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  • क्या चुपके से थोड़ा जी लूं मै ?

    ये कविता बिटियाओं की ओर से समाज को संबोधित है, शायद यही सच है आज भी !

    अपने ही जीवन से कुछ पल चुरा

    क्या चुपके से थोड़ा जी लूं मै ?


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  • क्या चुपके से थोड़ा जी लूं मै ?

    ये कविता बिटियाओं की ओर से समाज को संबोधित है, शायद यही सच है आज भी !
    
    
    अपने ही जीवन से कुछ पल चुरा
    क्या चुपके से थोड़ा जी लूं मै ?
    
    तुमने मुझे अपनी कथा का पात्र बना
    एक सीमा तक यूं नचाया है मुझे. 
    
    मेरे स्वपन, मेरी उड़ान को अलभ्य बता
    हंस कर, टोक कर, भीड का हिस्सा बनाया है मुझे..
    
    क्यों मुझे बस कविताओ के छंदो में बांध 
    यूं सपनों में सदा कैद रखा है मुझे...
    
    क्यों नही मुझे नदी का प्रवाह बनने देते
    एक उन्मुक्त आजाद पवन बनने देते....
    
    या कहीं मै खग से मुक्त स्वप्न देखने लगी
    तो कैसे पंख कतरोगे, ये विचार रहे तुम.....
    
    
    
    09-06-2015
    
    
    • Date

      03-10-2023

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