तुम मत करना कुछ स्वीकार
पर मै तुम्हे
इस अधेड़ उम्र में भी
एक छायादार वृक्ष बन दिखलाऊंगा
तुम्हारी राह में छाया बन छा जाऊँगा
तुम मत करना मुझे अंगीकार
पर मै तुम्हे
जहाँ भी तुम रहोगी
एक बादल बन दिखलाऊंगा
तुम्हारे मन आँगन में खूब बरस इतराऊंगा
तुम मत करना कुछ स्वीकार
पर मै तुम्हे
इस अधेड़ उम्र में भी
एक छायादार वृक्ष बन दिखलाऊंगा
तुम्हारी राह में छाया बन छा जाऊँगा
तुम मत करना मुझे अंगीकार
पर मै तुम्हे
जहाँ भी तुम रहोगी
एक बादल बन दिखलाऊंगा
तुम्हारे मन आँगन में खूब बरस इतराऊंगा
तुम मत लाना मन में विचार
पर मै तुम्हे
एक महकता फूल बन दिखलाऊंगा
तुम्हारे तन-बदन में सुरभि महकाऊंगा
तुम मत लाना मन में विकार
पर मै तुम्हे
एक अमृतमयी चन्द्रमा बन दिखलाऊंगा
तुम्हारे घर आँगन को अपनी चांदनी में नहलाऊंगा
नीरज गर्ग
२७-१२-२०११.
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