आज प्यार का पर्व
और बाहर
तिरपाल पर टपकती
बारिश की
ताल बद्ध बूँदें
जैसे तुम्हारा प्रेम
मेरे हृदय के
मरुथल को
सींच रहा हो
अविरल - अविराम
आज प्यार का पर्व
और बाहर
तिरपाल पर टपकती
बारिश की
ताल बद्ध बूँदें
जैसे तुम्हारा प्रेम
मेरे हृदय के
मरुथल को
सींच रहा हो
अविरल - अविराम
और मै रूखी रेत सा
उड़ रहा हूँ
लक्ष्यहीन दर-बदर
हवा के झोंके की
दया माया पर
क्यों नहीं तुम
मुझ पर इतना बरसतीं
कि मेरा मन तर-बतर हो
तुम्हारे प्रेम में
कुछ इस तरह
कि यहाँ कोंपल फूटें
नए आशा भरे
तुम्हारे प्रेम से
फूलों से सजे
वन-उपवन की
आज इतना बरसो मुझ पर
कि मेरे अंतर का
कोई भी कोना
रूखा न रह जाये
सूखा न रह जाए
१४-०२-२०१४
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