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  • प्यार का पर्व

    आज प्यार का पर्व 
    और बाहर 
    तिरपाल पर टपकती 
    बारिश की 
    ताल बद्ध बूँदें 

    जैसे तुम्हारा प्रेम 
    मेरे हृदय के 
    मरुथल को 
    सींच रहा हो 
    अविरल - अविराम 


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  • प्यार का पर्व

    आज प्यार का पर्व 
    और बाहर 
    तिरपाल पर टपकती 
    बारिश की 
    ताल बद्ध बूँदें 

    जैसे तुम्हारा प्रेम 
    मेरे हृदय के 
    मरुथल को 
    सींच रहा हो 
    अविरल - अविराम 

    और मै रूखी रेत सा 
    उड़ रहा हूँ 
    लक्ष्यहीन दर-बदर 
    हवा के झोंके की 
    दया माया पर 

    क्यों नहीं तुम 
    मुझ पर इतना बरसतीं 
    कि मेरा मन तर-बतर हो 
    तुम्हारे प्रेम में 
    कुछ इस तरह 

    कि यहाँ कोंपल फूटें 
    नए आशा भरे 
    तुम्हारे प्रेम से 
    फूलों से सजे 
    वन-उपवन की 

    आज इतना बरसो मुझ पर 
    कि मेरे अंतर का 
    कोई भी कोना 
    रूखा न रह जाये 
    सूखा न रह जाए 

    १४-०२-२०१४

    • Date

      03-10-2023

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