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  • शायद

    याद है, 
    तुम और मैं 
    पहाड़ी वाले शहर की 
    लम्बी, घुमावदार,
    सड़्क पर
    बिना कुछ बोले
    हाथ में हाथ डाले
    बेमतलब, बेपरवाह 
    मीलों चला करते थे,
    खम्भों को गिना करते थे,
    और मैं जब 
    चलते चलते
    थक जाता था
    तुम कहती थीं ,
    बस
     


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  • शायद

    याद है, 
    तुम और मैं 
    पहाड़ी वाले शहर की 
    लम्बी, घुमावदार,
    सड़्क पर
    बिना कुछ बोले
    हाथ में हाथ डाले
    बेमतलब, बेपरवाह 
    मीलों चला करते थे,
    खम्भों को गिना करते थे,
    और मैं जब 
    चलते चलते
    थक जाता था
    तुम कहती थीं ,
    बस
    उस अगले खम्भे 
    तक और ।

    आज 
    मैं अकेला ही
    उस सड़्क पर निकल आया हूँ , 
    खम्भे मुझे अजीब 
    निगाह से 
    देख रहे हैं
    मुझ से तुम्हारा पता 
    पूछ रहे हैं
    मैं थक के चूर चूर हो गया हूँ 
    लेकिन वापस नहीं लौटना है
    हिम्मत कर के , 
    अगले खम्भे तक पहुँचना है |
    सोचता हूँ कि -
    तुम्हें तेज चलने की आदत थी,
    शायद 
    अगले खम्भे तक पुहुँच,
    तुम मेरा -
    इन्तजार कर रही हों  ! 

     

    ~ नीरज गर्ग 

    फरीदाबाद

    2014

    • Date

      03-10-2023

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